प्रिय पाठकों उपरोक्त शीर्षक से आप समझ ही गए होंगे कि आज हम एक ऐसे व्यक्तित्व विशेष की बात करने जा रहे है जिनके लिए सफलता की सीढियां चढ़ना ठीक वैसा ही था जैसे कि चाँद को छूना. हम बात कर रहे है उन किन्नरों की जिन्हें आज भी हमारे तथाकथित सभ्य समाज में हीन और घृणा की दृष्टि से देखा जाता है. “कामयाबी का नया चेहरा” इन्ही किन्नरों का है जिन्होंने समाज की रूढ़िवादिता को तोड़कर अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है. इन किन्नरों ने अपनी कामयाबी से साबित कर दिया कि सफलता पर किसी भी इन्सान या वर्ग विशेष का एकाधिकार नहीं है. सफलता पर जितना दूसरों का हक़ है उतना ही इन किन्नरों का भी है. इन किन्नरों ने अपनी असली पहचान छुपाकर कामयाबी का दामन पकड़ने से इनकार कर दिया और दुनिया को ये दिखा दिया कि अपनी पहचान को अपनी कमज़ोरी न बनाकर उसे अपनी ताक़त बनाकर भी दुनिया को अपनी मुट्ठी में किया जा सकता है.
ज्योतिष के अनुसार एक मान्यता है की पुरुष वीर्य की अधिकता से (पुत्र) उतपन्न होता है।स्त्री रक्त (रज) की अधिकता से (कन्या) उतपन्न होती है। और यदि वीर्य और राज़ समान मात्रा में हो तो किन्नर संतान उतपन्न होती है |
‘शासन करने की बेहतर क्षमता का लिंग से क्या संबंध’ कहना है देश की पहली किन्नर विधायक शबनम मौसी का
किन्नरों की राजनीति में अपनी सक्रिय भागीदारी
साल २०१४ ने इन किन्नरों के बेहतर भविष्य का एलान कर दिया. उच्च न्यायालय ने इन किन्नरों के पक्ष में ये घोषणा की कि भारत देश में जहां संविधान का कानून चलता है वहाँ पर इन किन्नरों को बराबरी का अधिकार है. सिर्फ वर्ग विशेष के आधार पर किसी को भी उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है. इस खबर ने किन्नर समाज में खुशियों की बहार ला दी. इस खबर ने किन्नर समाज को सर उठाकर और स्वाभिमान के साथ जीने का अधिकार दिया. यही वो समय था जब इन किन्नरों ने अपनी एक अलग पहचान बनाने का आगाज़ किया. ये वो शंखनाद था जिसने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा. वर्तमान समय की बात की जाए तो इस समय भारत में किन्नरों की आबादी तकरीबन २० लाख से ज्यादा है.
आज कई किन्नरों के समुदाय ऐसे है जिन्होंने राजनीति में अपनी सक्रिय भागीदारी दर्ज की है. राजनीति में इन किन्नरों ने अपना लोहा भी मनवा लिया है. अभी कुछ साल पहले ही कोच्ची मेट्रो में कई किन्नरों कि नियुक्तियां की गई है.
किन्नरों की सफलता का उदाहरण – जारा शेख
किन्नरों की सफलता का इससे अच्छा उदाहरण शायद ही कही देखने को मिले. आपको बताते चले कि केरल के तिरुवनंतपुरम की रहने वाली किन्नर जारा शेख को हाल ही में एक प्रतिष्ठित बहुराष्ट्रीय कंपनी के टेक्नोपार्क यूएसटी ग्लोबल कंपनी में वरिष्ठ सहायक के पद पर नियुक्त किया गया है. जारा शेख ने केरल यूनिवर्सिटी से स्नातक किया है. इससे पहले जारा शेख दुबई के अबू धाबी में नौकरी करती थी लेकिन जब उनके किन्नर होने का पता चला तो कंपनी ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया. आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि जारा शेख भारत की पहली ऐसी शख्सियत है जो बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है. जारा शेख की ज़िन्दगी में एक मोड़ ऐसा भी आया जब लोगो के तानों और उपेक्षा से तंग आकर उसने खुद को खत्म करने का निर्णय लिया था लेकिन जारा शेख ने हार मानने से इनकार कर दिया और लड़ना स्वीकार किया. उसे कदम-कदम पर ठोकरे मिली लेकिन वो अपनी जिद पर अड़ी रही. उसकी इस जिद ने ही आज उसकी दुनियां को बदल कर रख दिया है और नतीज़ा सारी दुनिया के सामने है.
इसी तरह किन्नर समुदाय के लिए साल २०१७ खुशियों की सौगात लेकर आया. साल के शुरूआती महीनों में केरल की एक फैशन डिज़ाइनर शर्मीला ने अपने साड़ियों के कलेक्शन को प्रस्तुत करने के लिए दो किन्नर “माया मेनन” और “गोवरी सावित्री” को अपनी मॉडल चुना. शर्मीला जी का ये कदम किन्नरों के लिए बहुत ही सम्मानजनक और सराहनीय है. उनके इस साहसिक कार्य की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतना ही कम है. लेकिन शर्मीला जी के लिए ये कम इतना आसान नहीं था. सबसे पहली बात ये थी कि ‘करीला’ संस्था के माध्यम से ये दोनों किन्नर शर्मीला जी को मिले और जब दोनों किन्नर शर्मीला जी से मिले तब वे दोनों मर्दाना पोशाक में थे जबकि उन्हें साड़ियों के कलेक्शन के लिए चुना जाना था. काम मुश्किल जरूर था लेकिन नामुमकिन भी नहीं था. शर्मीला जी ने और माया मेनन एवं गोवरी सावित्री ने इस चुनौती को स्वीकार किया. परिणामस्वरुप शो ने एक नया इतिहास रच दिया और शर्मीला जी ने अपने इस शो को पूरी तरह से किन्नरों को ही समर्पित कर दिया. इसे कहते है नारी शक्ति और असली नारी की पहचान. मर्दों के संसार में शर्मीला जी एक सच्ची मर्द साबित हुई. वही किन्नर होते हुए भी किसी भी प्रकार की आलोचनाओं की परवाह ना करते हुए इन दोनों किन्नरों ने सफलता का ऐतिहासिक कीर्तिमान रच दिया.
किन्नरों ने अपनी पहचान छिपाने से तो इनकार कर ही दिया है लेकिन उन्होंने भीख मांगकर जीवन-यापन करने से भी मना कर दिया है. इसी से पता चलता है कि इस समुदाय में भी अब धीरे-धीरे जागरूकता आ रही है. इसी जागरूकता का एक जीता जागता उदाहरण है जमशेदपुर (झारखण्ड) की किन्नर डॉली. डॉली उन किन्नरों की जमात में शामिल है जो कि समाज की मुख्य धारा से स्वयं को जोड़ना चाहती है. उसने ट्रेन और सड़कों पर भीख मांगने से साफ़ इनकार कर दिया और अपना स्वयं का छोटा सा फ़ूड कोर्ट खोला. सामाजिक संस्था “रोटरी क्लब वेस्ट” के सहयोग से तीन किन्नर लाल, अमरजीत और डॉली को फ़ूड कोर्ट उपलब्ध करवाए गए ताकि ये किन्नर स्वाभिमान के साथ सर उठा के जी सके. इन सभी का यही कहना है कि मेहनत और हुनर दोनों ही गुण हमारे अन्दर है और हमें अपनी मेहनत की कमाई से ख़ुशी और आत्म संतुष्टि मिलती है. अमरजीत ने तो इन सबसे एक कदम आगे बढकर अपना स्वयं का एक सामाजिक संस्था “उत्थान” का गठन भी कर लिया है.
किन्नरों को मंगलमुखी भी कहते है लेकिन फिर भी हमारे देश में अधिकांश किन्नरों के समुदाय दीन-हीन जीवन जीने को मजबूर है. इसका सबसे बड़ा कारण किन्नरों के प्रति हमारी विकृत मानसिकता और भेदभाव भरा रवैय्या है. किन्नरों के लिए भी रोजगार के साधन उपलब्ध होने चाहिए और उनके लिए सामाजिक भेदभाव को ख़त्म करना चाहिए. तभी किन्नर समुदाय अपनी सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर अपनी एक अलग पहचान बना पायेगा. हमारा समाज ये तो मानता है कि किन्नरों की दुआओं में बड़ा ही असर होता है लेकिन उनके लिए समाज का प्रबुद्ध वर्ग कुछ भी करने को तैयार नहीं है.
अगर आप किन्नर से ₹1 का सिक्का लेते हैं तो आप पर पैसे की कभी भी कमी नहीं रहेगी | किन्नर की खुल हंसी खुशी से ₹1 का सिक्का अगर आप अपने पास पर्स में रखते हैं और हरे कपड़े में बांध कर रखेंगे तो आप पर धन का लाभ होगा और मां लक्ष्मी की कृपा आप लोगों के ऊपर बनी रहेगी साथ ही आप यह भी ध्यान रखे कि अगर किन्नर आपको ₹1 का सिक्का बुधवार को मिलता है तो आपके पास अचानक धन लाभ होगा |
दुनिया भर के मंचों पर हमारे समाज का भला चाहने वाले लोग पता नहीं कौन-कौन से मुद्दे उठाते रहते है लेकिन किन्नरों के अधिकारों का कोई भी मुद्दा उठाना ही नहीं चाहता है बल्कि अपनी संरचना को लेकर आये दिन इनके समाज को पता नहीं कितना प्रताड़ित होना पड़ता है. देश आज़ाद हुए ६४ साल हो चुके है लेकिन आज भी हमारे समाज में इनको कोई भी आजादी नहीं मिली है. इनको इनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है. दुनिया के लगभग सभी देशों में किन्नर रहते है. किन्नरों का भी एक अलग ही अस्तित्व है और ऐसा भी नहीं है कि समाज में इनकी कोई पहचान नहीं है फिर भी उन्हें ना तो एक आम इंसान समझा जाता है और ना ही इन्हें हमारे सभ्य समाज ने बराबरी का हक़ दिया है. उनकी पहचान हमारे समाज में आज भी गाने बजाने और नाचने वालों से कम नहीं है. जिस तरह सरकार ने एक विशेष वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था की है वैसे ही किन्नर समुदाय के उत्थान के लिए भी आरक्षण होना चाहिए. उनके लिए भी नौकरी के अवसर होने चाहिए. उन्हें भी तरक्की करने और आगे बढ़ने के मौके दिए जाने चाहिए. किन्नर कोई अजूबा नहीं है इसीलिए उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए.
महाभारत में जब पांडव एक वर्ष का अज्ञात वास में थे , तब अर्जुन एक वर्ष तक किन्नर “वृहन्नला” बनकर रहे और उत्तरा को नृत्य और गायन की शिक्षा दी थी।
किन्नर का अंग फोटो
आप को किन्नरों के बारे में सबसे रोचक जानकारी देते है नीचे फोटो में देखे , उनके अंग कैसे होते है
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