भारत की प्रथम सभ्यता सिंधु घाटी सभ्यता मानी जाती है। सिन्धु घाटी में मोहन जोदड़ो और हड़प्पा ताम्र कांस्ययुगीन सभ्यता के प्रमुख केन्द्र थे। हड़प्पा के अवशेष इस सभ्यता के प्रमुख केन्द्र थे एवं इस सभ्यता के विकसित और परिष्कृत रूप को प्रकट करते है।हड़प्पा संस्कृति के नागरिक लेखन कला के विकास कर चुके थे परन्तु इनकी लिपि का अर्थ आज भी रहस्यमय है। ये लोग साथ सुनियोजित नगरों में रहते थे। इस सभ्यता के लाग वास्तुकला एवं कृषि सम्बन्धित कार्यों के भी अच्छे जानकार थे। माना जाता है कि मेसोपोटामिया व पश्चिम एशिया के कुछ अन्य देशों के साथ उनके व्यापारिक संबंध थे।
सिन्धु सभ्यता का विस्तार एवं स्थल:
हड़प्पा सभ्यता के प्रारम्भिक स्थल सिन्धु क्षेत्र तक ही सीमित होने के कारण, उसे सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम दिया गया था। अनेकों स्थलों की खुदार्इ के बाद पता चलता है कि यह सभ्यता पंजाब, सिन्ध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों तक फैली थी। इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से उत्तर पूर्व में मेरठ तक था।
सिन्धु सभ्यता का काल:
सिन्धुसभ्यता काल के विषय में पयार्प्त मतभेद है। विभिन्न इतिहासकार उसका समय 2500 ईसा पूर्व से 5000 ईसा पूर्व तक निश्चित करते है। सर जॉन मार्शल इसे 500 ईसा पूर्व की सभ्यता मानते है। हरिदत्त वेदालंकार इसका समय 3000 ईसा पूर्व निर्धारित करते है। डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी और श्री अर्नेस्ट मैके इस सभ्यता का समय 3250 ईसा पूर्व से 2750 ईसा पूर्व बताते है।
सिन्धु घाटी सभ्यता की विशेषतायें:
नगर निर्माण एवं भवन निर्माण:
नगरों एवं भवनों का निर्माण इस सभ्यता की सर्वश्रेष्ठ विशेषता थी। सिंधु सभ्यता का नाम सुनते ही एक नगरीय एवं साक्षर संस्कृति की छवि दिमाग में प्रवेश करती है। सभी प्रमुख नगर जिनमे हड़प्पा मोहन जोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल तथा कालीबंगा सभी प्रमुख नगर नदियों के तट पर बसे थे इन नगरों में सुरक्षा के लिये चारों ओर परकोटा दीवार का निर्माण कराया जाता था। प्रत्येक नगर में चौड़ी एवं लम्बी सड़के थी, जो शहरों को आपस में जोड़ती थी। सिन्धु घाटी सभ्यता में कच्चे पक्के, छोटे बड़े सभी प्रकार के भवनों के अवशेष मिले है। सुनियोजित ढंग से भवन निर्माण करने में सिन्धु सभ्यता के लोग दक्ष थे। इनके द्वारा निर्मित मकानो में सुख.सुविधा की पूर्ण व्यवस्था थी। प्रकाश व्यवस्था के लिये रोशनदान एवं खिड़कियां भी बनार्इ जाती थी। रसोर्इ घर, स्नानगृह, आंगन एवं भवन कर्इ मंजिल के होते थे। दीवार र्इटो से बनार्इ जाती थी। भवनो तथा घरों में कुंये भी बनाये जाते थे। लोथल में र्इटो से बना एक हौज मिला है।
विशाल स्नानागार:
मोहन जोदड़ो में उत्खनन से एक विशाल स्नानागार मिला जो अत्यन्त भव्य है। स्नानकुण्ड से बाहर जल निकासी की उत्तम व्यवस्था थी। समय–समय पर जलाशय की सफार्इ की जाती थी। स्नानागार के निर्माण के लिये उच्च कोटि की सामग्री का प्रयोग किया गया था, जिससे आज भी उसका अस्तित्व विद्यमान है।
अन्न भण्डार:
हड़प्पा नगर के उत्खनन में यहां के किले के दोनों ओर 6-6 की पंक्तियों वाले अन्न भण्डार के अवशेष मिले है, अन्न भण्डार की लम्बार्इ 18 मीटर व चौड़ार्इ 7 मीटर थी। इसका मुख्य द्वार नदी की ओर खुलता था, ऐसा लगता था कि जलमार्ग से अन्न लाकर यहां एकत्रित किया जाता था। सम्भवत: उस समय इस प्रकार के विशाल अन्न भण्डार ही राजकीय कोषागार के मुख्य रूप थे।
जल निकास प्रणाली:
सिन्धु घाटी की जल निकास की व्यवस्था अत्यधिक उच्च कोटि की थी। नगर में नालियों का जाल बिछा हुआ था सड़क और गलियों के दोनो ओर र्इटो की पक्की नालियां बनी हुर्इ थी। मकानों की नालियॉं सड़को या गलियों की नालियों से मिल जाती थी। नालियों को र्इटो और पत्थरों से ढकने की भी व्यवस्था थी।
मनोरंजन:
सिन्धु सभ्यता के लोग मनोरजंन हेतु विविध कलाओं का प्रयोग करते थे जिनमें जानवरों की दौड़, शतरंज मुख्य थे। खुदाई में प्राप्त नृत्यगंना की मूर्ति हमें हड़प्पा संस्कृति में नाच गाने के प्रचलन को बताती है। इसके अतिरिक्त यहां मिट्टी एवं पत्थर के पासे भी मिले है।
वस्त्र:
ये लोग स्वयं हाथ से धागा बुनकर वस्त्र बनाते थे तथा महिलायें घाघरा साड़ी एवं पुरूष धोती एवं पगड़ी का प्रयोग करते थे।
भोजन:
हड़प्पा संस्कृति के लागे भोजन के रूप में गेहॅूं, चावल, तिल आदि का उपयोग करते थे। लोग विभिन्न जानवरों का शिकार करते थे। यहां पर खुदार्इ से बहुत सारे ऐसे बर्तन मिले है, जिनसे आकार एवं प्रकार से खाद्य व पेय सामग्रियों की विविधता का पता लगता है। पीसने के लिये चक्की का प्रयोग करते थे।
आभूषण एवं सौदर्य प्रसाधन:
स्त्री, पुरूष दोनों आभूषण धारण करते थे। आभषूणों में हार कंगन, अंगूठी, कर्णफूल, भुजबन्ध, कडे, करधनी, पायजेब, हंसली आदि उल्लेखनीय है। आभूषण सोने, चॉदी, पीतल, तांबा, हाथी दांत, हड्डियों और पक्की मिट्टी के बने होते है। अमीर बहुमूल्य धातुओं और जवाहरातों के आभूषण धारण करते थे। स्त्री पुरूष दोनो श्रृंगार प्रेमी थे धातु एवं हाथी दांत की कंघी एवं आइना का प्रयोग करते थे। केश विन्यास उत्तम प्रकार का था खुदार्इ से काजल लगाने की एवं होठों को रंगने के अनेक छोटे–छोटे पात्र मिले हैं।
कृषि:
हड़प्पा युग में सिन्धु नदी में बाढ़ आती थी जिससे भूमि अधिक उपजाऊ हो जाती थी। सिन्धु घाटी के लोग बाढ़ से उपजाऊ भूमि में गेहू और जौ की बोआइ करते थे। खेत में समकोण पर बनी क्यारियां मिली है, जिससे पता चलता है कि खेत में एक समय में दो फसलें लगाना सम्भव था। सम्भवत: हड़प्पा के लोग लकड़ी के बने हल का उपयोग करते थे। शायद पत्थर की दराती से फसलें काटी जाती थी। नहरों द्वारा सिंचाई के साक्ष्य प्राप्त नहीं हुए हैं। हड़प्पा की मुख्य फसलें थी गेहूं, जौ, कपास, तिल। इनका भण्डारण विशाल धान्य कोठरियों में किया जता था। बाढ़ के पानी का उपयोग खेतों की सिंचार्इ के लिए किया जाता था।
पशुपालन:
अन्य प्रमुख व्यवसाय पशुपालन का था। बैलए गायए सूअर के अस्थि–पंजर प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुए है। अत: वे पशुपालन करते थे। गाय और भैंस का दूध प्रयोग किया जाता था।
कला का विकास:
इस सभ्यता के लोग मुर्तिकला, चित्रकला, धातु कला एवं मुद्रा कला में निपुण थे जिनके अवशेष खुदाई के दौरान प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुए हैं। इसके अलावा ये पात्र निर्माण कला, वस्त्र निर्माण कला, नृत्य एवं संगीत कला, लेखन कला में भी दक्ष थे।