क्या आप जानते है सावन माह से जुड़ी कुछ खास बातें, आखिर क्यों की जाती है शिव की विशेष पूजा

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नई दिल्ली। हिंदू धर्म में सावन के महीने का बहुत महत्व है। श्रावण मास में भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। शास्त्रों की अगर मानें तो श्रावण मास भगवान भोलेनाथ यानि की शिव को सबसे प्रिय है। इसे मनोकामनाओं को पूरा करने का पवित्र महीना भी कहा जाता है। श्रावण मास को वर्ष का सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस माह में सोमवार का व्रत और सावन स्नान की भी परंपरा है।

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बता दें कि इस बार श्रावण मास की शुरूआत 6 जुलाई से हो रही है और इसका समापन 3 अगस्त को होगा। इस बार श्रावण मास पर अद्भुत संयोग बन रहा है क्योंकि सावन की शुरूआत का पहला दिन ही सोमवार है, वहीं सावन के अंतिम दिन यानी 3 अगस्त को भी सोमवार का ही दिन है जो कि शिव जी को काफी प्रिय है।

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जानिए क्या है सावन माह का महत्व
सबसे पहले जानते है कि आखिर सावन माह का ही क्या महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सावन माह में ही समुद्र मंथन किया गया था। मंथन के दौरान समुद्र से विष निकला, जिसे भगवान शंकर ने अपने कंठ में उतारकर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की थी। इसलिए माना जाता है कि इस माह में उनकी उपासना से विशेष कृपा प्राप्त होती है। सावन माह के विशेष दिनों में भगवान शिव का विविध रूपों में श्रृंगार होता है और इन दिनों में शिव भक्त उपवास रख कर शिव आराधना में लीन रहते हैं। साथ ही इस माह में कावड़ यात्रा का दौर भी शुरू होता है। पूरे माह लोग शिव आराधना में लीन रहेंगे और शिव की
भक्ति से पुण्य प्राप्त करेंगे, क्योंकि इसी माह भगवान विष्णु के योग निद्रा में लीन होने के बाद शिव जगत के कल्याण के लिए जाग्रत मुद्रा में आ जाते हैं सावन मास को मासोत्तम मास कहा जाता है।

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आखिर क्या है कांवड़ यात्रा का महत्व
सावन मास में लाखों भक्त विभिन्न स्थानों से गंगा और अन्य पवित्र नदियों और जलाशयों से कांवड़ में जल लेकर पदयात्रा करके शिव मंदिर आते हैं और जलाभिषेक करते हैं। इस परंपरा का सावन माह की शिव पूजा में अत्याधिक महत्व माना जाता है। कहते हैं कि भगवान परशुराम, शिव जी के पूजन के लिए पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना करने के बाद कांवड़ में गंगाजल भर कर पदयात्रा करके आये और उस जल से शंकर जी का अभिषेक कर कांवड़ परंपरा की शुरुआत की थी। साथ ही ये भी माना जाता है कि जब समुद्र मंथन से निकले विष का पान करने से शिव जी की देह जलने लगी तो उसे शांत करने के लिए देवताओं ने विभिन्न पवित्र नदियों और सरोवरों के जल से उन्हें स्नान कराया। यही कारण है भगवान शिव कांवड़ के जल से अभिषेक करने पर सबसे ज्यादा प्रसन्न होते हैं।
जल चढ़ाने का भी है विशेष महत्व
कांवड़ के रहस्य के साथ ही जुड़ी है शिव के जलाभिषेक की परंपरा जो सावन माह में शिव पूजन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है। भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व भी समुद्र मंथन की कथा से ही जुड़ा हुआ है। अग्नि के समान विष पीने के बाद शिव का कंठ एकदम नीला पड़ गया था। इसी विष की उष्णता को शांत कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए शिव पूजा में जल का विशेष महत्व माना जाता है। इसके साथ ही परंपरा के अनुसार शिव स्वयं जल ही माना गया है। शिवपुराण में कहा गया है कि संजीवनं समस्तस्य जगत: सलिलात्मकम्। भव इत्युच्यते रूपं भवस्य परमात्मन:॥ जो जल समस्त जगत के प्राणियों में जीवन का संचार करता है वह जल स्वयं उस परमात्मा शिव का रूप है, यानि भगवान शिव ही स्वयं जल हैं। इसीलिए जल का अपव्यय नहीं करना चाहिए बल्कि उसका महत्व समझकर उसकी पूजा करना चाहिए।
बेलपत्र और शमीपत्र का महत्व
शिव की पूजा सामान्य दिनों में हो या सावन माह में भक्त उनको प्रसन्न करने केलिए बेलपत्र और शमीपत्र अवश्य चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा भी प्रसिद्घ है जिसमें बताया गया है कि जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि ब्रह्म जी से जाननी चाही तो उन्होंने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक शमीपत्र का महत्व होता है।

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सावन सोमवार और श्रावण नक्षत्र का महत्व
इसी प्रकार श्रावण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है। हिंदू पंचाग के अनुसार सभी मासों को किसी न किसी देवता के साथ संबंधित देखा जा सकता है, उसी प्रकार श्रावण में पड़ने वाले सावन मास को भगवान शिव जी के साथ देखा जाता है इस समय शिव आराधना का विशेष महत्व होता है। यह माह आशाओं की पूर्ति का समय होता है, औ इस माह में पड़ने वाले प्रत्येक सोमवार से शिव का सबसे करीब का रिश्ता होता है।

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