हुमायूँ का इतिहास – Humayun History in Hindi

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humayun history in hindi

हिमायुँ मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर का बेटा था और मुग़ल वंश का दूसरा शासक था। हिमायुँ का पूरा नाम नासिरुद्दीन मुहमद हिमायुँ था उसका जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था हिमायुँ बाबर के चार पुत्रों में सबसे बड़े थे बाबर ने अपनी मौत से पहले हीं हिमायुँ को मुग़ल साम्राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। भारत में राजभिषेक के पहले 12 बर्ष की छोटी आयु में उसे बदखा का सूबेदार नियुक्त किया गया छोटी अवस्था में हीं उसने भारत के वो सारे अभियानों में भाग लिया जिसपे बाबर राज करता था।

30 दिसंबर 1530 को 23 वर्ष की आयु में हिमायुँ ने राजगद्दी संभाला और कई सारे साम्राज्य को सेना बल से कब्ज़ा करने लगा 1531 में बहादुर शाह की बढाती हुई शक्ति को रोकने के लिए कालिंजर पर आक्रमण कर दिया। हिमायुँ ने अपने विजयी अभियानों के तहत कई परदेशो को हथियाने की कोशिश  किया। 1532 ईस्वी  ने दोहरिया में हिमायुँ की सेना ने मुहमद लोदी की सेना पे हमला कर दिया जिसमे हिमायुँ की जीत हुयी। इस तरफ हिमायुँ धीरे धीरे पुरे भारत में अपना अधिकार बनाने लगा। 1538 को जब हिमायुँ ने बंगाल के गोडा छेत्र में प्रवेश किया तो उसे वहा पर चारो और उजाड़ एबं लाशो का ढेर दिखाई पड़ा। हिमायुँ ने इस स्थान का पुनर्निर्मार्ण  कर इसका नाम जानताबाद रखा।

गुलबदन बेगम  (history of humayun humayun nama)

26 जून 1539 को हिमायुँ और शेर खान की सेनाओ के बिच भयंकर युद्ध हुआ यह युद्ध हिमायुँ अपनी गलतियों के कारण हर गया और मुग़ल सेना बुरी तरह से बर्बाद हो गई हिमायुँ ने युद्ध से भागकर गंगा नदी पर कर के अपनी जान बचाई थी और यहाँ से भाग गया। आगरा और दिल्ली पर शेर खान ने अपना अधिपत कायम कर लिया इस तरह हिन्दुस्तान की राजसत्ता एक बार फिर बदल गयी। शेरशाह से हारने के बाद हिमायुँ सिंध चला गया और 15 वर्षो तक घुमन्तु की तरह  जीबन जीने लगा इस निर्वास के समाय ही अपने दोस्त मीर अली अकबरजामी की पुत्री हमीदा बानो से 29 अगस्त 1941 को निगाह कर लिया। गुलबदन बेगम ने  हुमायूँनामा लिखा है

सारी ज़िन्दगी राजाओं की तरह जीने वाला हिमायुँ चुप कहा बैठने वाला था लगभग 14 सालो बाद हिमायुँ ने पुनः 154 में कंधार और काबुल पर अपना अधिकार कर लिया। शेरशाह के पुत्र की मौत के बाद हिमायुँ फिर से हिन्दुस्तान पर अपना अधिकार करना चाहता था उसके लिए उसने अपने सेना को और मजबूत किया साथ हीं साथ अपनी सेना को पेशावर तक पंहुचा दिया और फरबरी 1555 में लाहौर पर कब्ज़ा कर लिया। धीरे धीरे 19 मई को हिमायुँ की सेना माछीवार स्थान पर सरदार नसीब खान और तातार खां से युद्ध किया जिसमे हिमायुँ की जीत हुयी और फिर से सम्पूर्ण पंजाब मुगलों के अधीन हो गया। अब हिमायुँ की नजर दिल्ली और आगरा पे थी जिसे वो फिर से हासिल करना चाहता था 22 जून 1555 ईस्वी  को अफगान और मुगलो के बीच  फिर से युद्ध शुरू हो गया जिसमे अफगान का अगुआई सुलतान सिंकदर सुर और मुगलों का अगुआई बैरम खान ने किया जिसमे मुगलों की जीत हुयी और पुनः दिल्ली के तख्त पर हिमायुँ बैठा और फिर से एक बार भारत में मुग़ल वंश की नीव पड गयी।

Humayun Ka Maqbara (हुमायूँ के मकबरा)

दिल्ली की तख्त पे बैठने के बाद हिमायुँ का दुर्भाग हीं था की वो ज्यादा दिन तक सत्ताभोग नहीं कर सका और जनबरी 1556 में दीनपनाह भवन में स्थित पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर हिमायुँ की मौत हो गयी एक इतिहासकार लेनपूल ने हिमायुँ के बारे में कहा था की हिमायुँ गिरते पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गया ठीक उसी तरह जिस तरह तमाम ज़िन्दगी गिरते  पड़ते चलता रहा था।

भारत के दिल्ली में बना हुआ मुग़ल शासक हुमायूँ का मकबरा है. 1569-70 में हुमायूँ के बेटे अकबर ने इसे मान्यता दी थी और बेगा बेगम द्वारा चुने गये पर्शियन आर्किटेक्ट मिरक मिर्ज़ा घियास ने इसे डिजाईन किया था.

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