इस समय देश में किसान आंदोलन चल रहा है। सरकार ने जून 2020 में एक अध्यादेश लाकर तीन विधेयक सदन में पास कराएं है। जिसे लेकर किसान सड़कों पर उतरे है। उनके प्रदर्शन पर कई तरह के सवाल उठ रहे है। कुछ लोगों का कहना है कि इस प्रदर्शन के पीछे राजनीतिक चाल है, कांग्रेस ने किसानों को भड़काया है, देश विरोधी ताकतों का हाथ इन आन्दोलन के पीछे है आदि। लेकिन आपको किसी भी परिणाम तक पहुँचने से पहले इन तीनो कानूनों के बारें में जान लेना चाहिए। आखिर क्यों किसान इतने दिनों से दिल्ली की सड़कों पर डटे हुए है। आइये जानते है कि क्या है यह कृषि कानून (Kisaan bill 2020) और इस क़ानून में कौन-कौन सी कमियां है।
1- आवश्यक वस्तु भण्डारण संसोधन
आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बनाया गया था। इस अधिनियम में सरकार ने आवश्यक चीजें जैसे कि गेहूं, तेल, दाल, प्याज आदि जैसे कृषि उत्पादों के भण्डारण पर एक सीमा लगायी थी। मतलब कोई भी व्यक्ति, संस्था या कंपनी रोजमर्रा में उपयोग होने वाली चीजों का भण्डारण अथाह नहीं कर सकता है। ऐसे करने पर उसे जुर्माना झेलना पड़ सकता है।
लेकिन 2020 में जो संसोधन हुआ उसमे यह कहा गया कि कोई भी व्यक्ति इन आवश्यक चीजों को बिना किसी सीमा पर स्टोर कर सकता है। इसके लिए कोई पाबंदी नही होगी। हाँ सरकार ने दो चीजे जरूर कही कि युद्ध या आपदा के समय स्टोर करने पर पाबंदी रहेगी उसके बाद इन चीजों को अथाह स्टोर किया जा सकता है।
इस नियम की कमियां
इसमें कमी यह है कि जब कोई भी अपने गोदाम में किसी चीज को स्टोर कर लेगा और उसे बाहर नहीं बेचेगा तो बाहर उस चीज की कमी होगी जिससे कि उस चीज का दाम बढ़ेगा। तब स्टोर करने वाला व्यक्ति दाम बढ़ने पर उस चीज को बाजार में बेचकर मुनाफा कमाएगा। इससे जमाखोरी बढ़ेगी। इस चीज से सीधे-सीधे जनता परेशान होगी। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ किसानों से इन चीजों को खरीदकर उन्हें स्टोर कर लेगी और दाम बढ़ने पर उसे ही आम जनता को बेचेगी। इससे पूजीवाद को बढ़ावा मिलेगा। सरकार का इस कानून के पक्ष में कहना है कि किसान भी इन आवश्यक चीजों को स्टोर कर सकता है और वह दाम बढ़ने पर बेच सकता है। लेकिन समस्या तब आती है कि जब किसान किसी फसल को निपटाकर अपने घर में रखता है तो उसे बाद में ही बेचता है। तो इससे किसान को फायदा न होकर व्यापारी को फायदा होगा। किसान तो अपनी फसल को पहले से ही अपने घर में स्टोर करता रहा है। इस नियम से किसानों को कोई फायदा न होकर सीधे जमाखोरों को फायदा होगा। जमाखोरी से दाम बढ़ेगा तो महगाई बढ़ेगी।
2- मूल्य आश्वासन एवं अनुबंध विधेयक 2020
इस कानून के तहत सरकार का कहना है कि किसान प्राइवेट कंपनियों से फसल बोने से पहले ही एक एग्रीमेंट साइन कर लेंगे जिससे कि उसी दाम पर फसल बोयेंगे और जब पैदावार होगी तो एग्रीमेंट के दाम पर कंपनी को फसल बेच देंगे। चाहे बाज़ारके दाम एग्रीमेंट में तय हुए दाम कम या ज्यादा रहे किसान को इसी हिसाब से बेचना पड़ेगा। इससे किसान को यह फायदा होगा कि बाजार में अनाज का दाम कम होने पर भी उसे एग्रीमेंट का दाम मिलेगा लेकिन अगर बाजार में फसल का दाम ज्यादा हुआ तो उसे नुकसान होगा क्योंकि उसे एग्रीमेंट के दाम पर ही फसल को बेचना पड़ेगा।
नियम की कमियां
यहाँ तक तो नियम ठीक था कि किसान कंपनी से अनुबंध करके अपनी फसल का दाम पा सकते थे। लेकिन सरकार ने गलती यहाँ कर दी कि किसानों और कंपनियों के बीच में होने वाले एग्रीमेंट के संचालन और क्रियान्वयन की जिम्मेदारी मंडी के उच्च अधिकारियों को दे दी। देना इसे ग्राम प्रधान या मुखिया को चाहिए था ताकि वे अपने वोट के लिए किसानों के पक्ष में लड़ सके। लेकिन अधिकारी को यह अधिकार देने का मतलब हुआ कि कंपनी अधिकारी को घूस देकर एग्रीमेंट में मनमुताबिक फेरबदल करके किसानों से फसल का दाम वसूलेगी। इससे किसान शोषित होगा।
3- कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य विधेयक 2020
इस नियम में कहा गया है कि किसान अपनी फसल को पूरे देश में कहीं भी बेच सकता है। इससे राज्य के बाहर बेचने पर बिक्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। अर्थात किसान को अपना अनाज मात्र मंडी में बेचना नहीं पड़ेगा। उसे सरकारी कांटे पर नहीं बेचना पड़ेगा। ऑनलाइन बिक्री होगी और किसानों को अच्छे दाम मिलेंगे और बिचौलियों की कमी होगी।
नियम की कमियां
पहली नज़र में तो यह नियम ठीक लगता है कि बिचौलियों की कमी होगी और किसान अपनी फसल को कहीं भी बेच सकता है लेकिन दिक्कत तब आती है जब किसान अपनी फसल को बाहर बेचेगा तो उसे एमएसपी खोने का डर रहेगा। हालांकि सरकार ने कहा है कि एमएसपी नहीं हटेगा लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पूरे भारत में मात्र 6% अनाज ही सरकारी कांटे पर जाता है। क्योंकि कई जगह सरकारी काँटा रहता ही नहीं है और जहाँ रहता है तो जब किसान सरकारी कांटे पर अपना अनाज एमएसपी पर बेचने जाता है तो उसे वहां के अधिकारी नहीं अनाज को नहीं खरीदते है। खरीदते भी है तो बहुत धांधली करके खरीदते है। निराश होकर किसान को अपना अनाज बिचौलियों को एमसीपी से कम दाम में बेचना पड़ता है। अब होता यह है कि सरकारी कांटे वाले आधिकारी एमएसपी से नीचे इन बिचौलियों से अनाज को खरीदते है और सरकारी रजिस्टर में चढ़ा देते है कि उन्होने यह अनाज किसान से एमएसपी पर खरीदा है इससे किसानों को चपत तो लगती ही है साथ ही सरकार को भी घाटा होता है। बीच के अधिकारी मुनाफा कमाते है।
किसान का कहना है कि बिचौलियों के रहने से उनका अनाज इकठ्ठा बिक जाता है और उन्हें उसका दाम मिल जाता है। बिचौलियों के न रहने से उनका अनाज नहीं बिक पायेगा और यह ख़राब हो जायेगा। वहीं बिचौलियों का कहना है कि उन्होंने जो गोदामें बनवाई है उसका क्या होगा। इस नियम से किसानों, बिचौलियों और सरकार तीनो को घाटा होगा।