धारा 370 का इतिहास: –
हमारे भारतीय संविधान में एक विशेष प्रकार के अनुच्छेद का उल्लेख मिलता है जिसमे ये निर्दिष्ट किया गया है कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के अन्य राज्यों की तुलना में जम्मू एवं कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार अथवा विशेष दर्जा हासिल है. आजादी के बाद से ही भारतीय राजनीती में धारा ३७० एक बहुत ही विवादित मुद्दा रहा है. कई राष्ट्रवादी दलों ने इस अनुच्छेद को समाप्त करने की मांग की है क्योंकि जम्मू एवं कश्मीर में व्याप्त अलगाववाद के लिए इसी धारा को जिम्मेदार माना जाता है.
Article 370 की रचना सरदार वल्लभभाई पटेल की गैरमौजूदगी में जवाहरलाल नेहरु की विशेष सिफारिश पर की गई थी. भारत के लिए कश्मीर का मुद्दा एक बहुत ही बड़ी समस्या बनी हुई है.
विशेष अधिकार :-
धारा ३७० के अंतर्गत इसमें जम्मू एवं कश्मीर राज्य को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त है जिसका उल्लेख निम्नानुसार है
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को दोहरी नागरिकता हासिल है अर्थात विशेष दर्जा प्राप्त होने और वहाँ के नागरिकों का स्वयं को भारत का हिस्सा ना मानने से उन्हें कहीं भी भारत की नागरिकता लेने का अधिकार है.
- इस अनुच्छेद के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य का राष्ट्र ध्वज अलग होगा.
- भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल ५ वर्ष का होता है जबकि जम्मू-कश्मीर की विधानसभाओं का कार्यकाल ६ वर्ष का होता है.
- भारत के उच्चतम न्यायालय के आदेश जम्मू-कश्मीर में ना तो लागू होते है और ना ही वहाँ पर इनकी कोई मान्यता है.
- जम्मू-कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रध्वज का अपमान करना कानूनी अपराध की श्रेणी में नहीं आता है.
- जम्मू-कश्मीर की किसी महिला द्वारा भारतीय नागरिक से विवाह करने पर उस महिला की नागरिकता समाप्त मानी जाती है जबकि इसके विपरीत यदि वही महिला किसी पाकिस्तानी नागरिक से विवाह करती है तो उसे जम्मू-कश्मीर की नागरिकता हासिल हो जाती है.
- धारा ३७० के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में भारत का कोई भी कानून लागू नहीं होता है जैसे कि RTI, RTE और CAG इत्यादि.
- जम्मू-कश्मीर में महिलाओं पर शरियत का कानून लागु है.
- यहाँ पंचायत के अधिकार नहीं है.
- धारा ३७० के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर से बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते है.
- धारा ३७० में स्पष्ट उल्लेख है कि कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानी नागरिकों को भी भारतीय नागरिकता हासिल होती है.
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धारा ३७० पर विवाद का कारण :-
धारा ३७० पर विवाद बहुत ही पुराना है. चूँकि इस अनुच्छेद में समय-समय पर कई बदलाव होते आये है लेकिन इस समस्या का अभी तक कोई स्थाई हल नहीं खोजा जा सका है. जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरी सिंह पहले तो अपने राज्य का विलय भारत में नहीं करना चाह रहे थे लेकिन दबाव में आकर वे अपने राज्य का विलय भारत में करने को तैयार हो गए. विलय के वक़्त उन्होंने इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन नाम के एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किये थे जो कि धारा ३७० का ही एक अहम् अंग है. चूँकि जम्मू-कश्मीर में भारत का कोई भी नियम-कानून लागु नहीं होता है इसी वजह से इसे ख़त्म करने की मांग अब ज़ोर पकड़ते जा रही है. शेख अब्दुल्लाह ने ही इसके प्रावधानों को तैयार किया था और महाराज हरिसिंह और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने आपसी सहमति से शेख अब्दुल्लाह को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमन्त्री नियुक्त कर दिया था.
सरदार पटेल को पूरी तरह से धोखे में रखकर और उनसे परामर्श किये बगैर जवाहरलाल नेहरु ने धारा ३७० का मसौदा तैयार करवाया था. सरदार पटेल इस अनुच्छेद के पूरी तरह से खिलाफ थे. इस धारा का और इसके मसौदे का उस समय खुद कांग्रेस ने कड़ा विरोध किया था.
क्या धारा ३७० ख़त्म हो सकती है ?
केंद्र सरकार के लिए इसे ख़त्म करना इतना आसान नहीं है क्योंकि इसे ख़त्म करने के लिए राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक है. धारा ३७० की कंडिका ३ के तहत राष्ट्रपति स्वविवेक से एक अधिसूचना जारी कर इस धारा को ख़तम कर सकता है लेकिन ये सब इतना आसान नहीं है क्योंकि राज्य सरकार की अनुमति के बिना ये सब संभव नहीं है.
फिलहाल तो नेशनल कौन्फ़्रेन्स और पीडीपी इसके खिलाफ है और हाल-फिलहाल इसे ख़त्म करने की सहमति होना या मंजूरी मिलना नामुमकिन ही है.
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बहुत अच्छा लगा 370 के बारे में पढ़ कर, आप ने यहाँ पर 35 A का कोई जिक्र नहीं किया , बिना 35 A के 370 अधुरा है
मोहन जी आप का सुझाव अति उत्तम था इसलिए टीम ने Article 35 के के बारे में लिखा है , आप इसे जरूर पढ़े। ..बेहतर लेख के लिए आप अपने सुझाव जरूर दे
https://www.janhitmejaari.com/what-is-article-35a-kashmir-hindi/
[…] नियुक्ति बहुत मत्वपूर्ण है क्यों की आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35 (A ) का मामला भी कोर्ट में चल […]