नई दिल्ली। मशहूर शायर राहत इंदौरी का दिल का दौरा पड़ने से मंगलवार को निधन हो गया। वह कोरोना वायरस से भी संक्रमित थे, जिसके उपचार के लिए उन्हें मध्य प्रदेश के इंदौर में 10 अगस्त की देर रात अरविंदो अस्तपाल में भर्ती कराया गया था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति शुरुआती दिनों में बहुत खराब थी। उन्हें साइन-बोर्ड चित्रकार के तौर पर भी काम करना पड़ा।
राहत इंदौरी अपनी शेरो-शायरी से जिस महफिल में जाते थे उसकी जान बन जाते थे। कहा जा सकता है कि हाल के बरसों में वो मंच के सबसे प्रिय और हिट शायर के तौर पर उभरे थे। वो गजब के हाजिर जवाब भी थे और वो 70 साल के थे।
जानिये राहत कुरैशी कैसे बन गए राहत इंदौरी, उनसे जुड़ी कुछ अनसुनी बातों को
– राहत इंदौरी का मूल नाम राहत कुरैशी था। इंदौर शहर का निवासी होने की वजह से उन्होंने इसे अपने नाम का हिस्सा बना लिया।
– उनके पिता रफतुल्ला कुरैशी एक कपड़ा मिल में मजदूर थे और माता मकबूल उन निसा बेगम गृहिणी थी।
– राहत इंदौरी की स्कूल से स्नातक की पढ़ाई इंदौर में और स्नातकोत्तर की पढ़ाई भोपाल में हुई।
– राहत इंदौरी ने मध्य प्रदेश की भोज यूनिवर्सिटी के उर्दू साहित्य में पीएचडी किया।
– वे पिछले 45 सालों से मुशायरे और कवि सम्मेलनों की जान बने हुए थे।
– उनकी लोकप्रियता दुनिया के तमाम देशों में थी और वे कई देशों में जा चुके थे।
– वे कवि सम्मेलनों के साथ ही बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी संगीत दे चुके थे।
– राहत इंदौरी पुरानी पीढ़ी के साथ ही नई जनरेशन में भी प्रसिद्ध थे।
– उनकी कविता ‘बुलाती है मगर जाने का नहीं’ टिकटॉक पर बहुत वायरल हुई थी।
– वे शायर होने के साथ ही एक अच्छे पेंटर भी थे।
सबसे बड़ी बात ये भी थी कि वे केवल साहित्य और पढा़ई में ही नहीं बल्कि खेलकूद में भी कम नहीं थे। स्कूल और कॉलेज स्तर पर फुटबॉल और हॉकी टीम के कप्तान भी थे।
हाल के बरसों में पूरे भारत और विदेशों से उन्हें मुशायरों के लिए निमंत्रण मिलते थे। उनमें गजब की क्षमता और मौलिकता थी। शब्दों की बाजीगरी भी वो खूब जानते थे। इसी से वो हिट होते चले गए। लोगों के बीच दिलों में जगह बनाने लगे। उनकी कविता खुशबू खासी हिट रही, जिसने उन्हें एक तरह से उर्दू साहित्य की दुनिया में एक प्रसिद्ध शायर बना दिया।