लगता है की साल २०१७ केंद्र सरकार की उपलब्धियों से भरा हुआ साल रहेगा या इसे यों कहे की ये साल आम जनता का स्वर्णिम वर्ष साबित होने वाला है. रेल मंत्रालय ने घोषणा की है कि अब से प्रत्येक रेलवे स्टेशन में जेनेरिक मेडिसिन या नॉन ब्रांडेड मेडिसिन या जन औषधि केंद्र खोले जायेंगे. रेल मंत्री सुरेश प्रभु और रसायन व उर्वरक मंत्री अनंत कुमार ने संयुक्त संवाददाता सम्मलेन में इस महत्वकांक्षी योजना की सार्वजनिक घोषणा भी कर दी है. केंद्र सरकार की मध्यम एवं गरीब वर्ग के लिए सस्ती दवाओं को उपलब्ध करवाने की ये योजना अत्यंत ही महत्वकांक्षी योजना साबित होने वाली है. जेनेरिक दवाओं की खासियत होती है की एक तो ये ब्रांडेड दवाओ की अपेक्षा सस्ती भी होती है और गुणवत्ता के लिहाज से ये किसी भी ब्रांडेड दवाओं जितनी ही असरदार भी होती है. केंद्र सरकार की योजना के अंतर्गत देश के कोने कोने में जन औषधि केंद्र खोले जायेंगे. एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में अभी तक तक़रीबन २००० के आस पास जन औषधि केंद्र खोले जा चुके है. रेलवे स्टेशन में इन दवाओ के स्टोर्स खुलने से यात्रियों को बड़ी ही राहत हुई है क्योंकि कई बार सुनने में आता है की चलती ट्रेन में या स्टेशन में अचानक ही तबियत बिगड़ जाने से यात्री को समय पर दवाई न मिलने से उसकी हालत गंभीर हो जाती है. कई बार तो दवाओं के अभाव में यात्री की मृत्यु तक हो जाती है फिर कई बार यात्रा की जल्दबाजी में यात्रिगन अपनी दवाओ को रखना ही भूल जाते है. ऐसे में स्टेशन में उपलब्ध ये जन औषधि केंद्र बड़े ही सहायक हो जाते है. जेनेरिक दवाओ के प्रचार प्रसार के लिए स्टेशन से बेहतर जगह और कोई नहीं हो सकती है.
क्या होती है जेनेरिक दवाएं:
जैसे कि हम सब जानते ही है कि जब कोई व्यक्ति बीमार होता है तो वो डॉक्टर के पास जाता है और आमतौर पर डॉक्टर मरीज को ब्रांडेड दवाई की ही पर्ची बना कर देता है. चूँकि ब्रांडेड दवाईयाँ मार्किट में बहुत ही महंगे दामो पर मिलती है और मरीज को उसे मजबूरी में खरीदना ही पड़ता है और मरीजो की इसी मजबूरी का लाभ ब्रांडेड दवा विक्रेता उठाते है. जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में काफी सस्ती होती है लेकिन गुणवत्ता में ये किसी भी ब्रांडेड दवा के बराबर ही होती है. ज्यादा लाभ कमाने के लालच में डॉक्टर भी मरीज को ब्रांडेड दवाओं की ही सलाह देता है और बेचारा मरीज ये जान ही नहीं पता है की जेनेरिक दवाएं भी ब्रांडेड दवाओं जितनी ही असरदार होने के साथ साथ सस्ती भी होती है. जेनेरिक दवाओ के गुण दोष सब कुछ ब्रांडेड दवाओ जैसे ही होते है. ब्रांडेड दवाओ को पेटेंट करवाया जा सकता है लेकिन जेनेरिक दवाओ के पेटेंट नहीं होते है. जेनेरिक दवा और ब्रांडेड दवा की कीमत में भी बहुत अंतर होता है जैसे कि ५, १०, १५, २०, २५ या इससे अभी अधिक. दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात ये है की ब्रांडेड दवाओ का प्रचार प्रसार भी बड़े पैमाने पर किया जाता है जबकि जेनेरिक दवाओ का न तो प्रचार प्रसार किया जाता है और ना ही उनका कोई विज्ञापन दिया जाता है. इसी वजह से आम लोगो को जेनेरिक दवाओ और उनकी गुणवत्ता का भरपूर ज्ञान नहीं होता है.
जेनेरिक दवाए लगभग हर मेडिकल स्टोर्स में उपलब्ध होती है लेकिन अधिक मुनाफाखोरी के लालच में कोई भी मेडिकल स्टोर्स मरीज को ये दवाइयां नहीं देते है और जेनेरिक दवाओ का ज्ञान न होने के कारण मरीज भी डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर्स के मालिको से कोई भी पूछताछ नहीं करते है.
जेनेरिक दवाओं की आवश्यकता :
चूँकि कभी कभी मरीज और उसके परिवार की स्थिति ऐसी हो जाती है की डॉक्टर उसे जो भी दवाई लिख कर देता है उसे मरीज को चाहे वो कितनी भी महंगी क्यों न हो खरीदना ही पड़ता है और डॉक्टर भी मरीज और उसके परिवार वालो को इतना डरा देता है की बेचारे वो लोग डॉक्टर की बात मानने को मजबूर हो जाते है. भला डॉक्टर की बात को कोई नजरंदाज़ कर भी कैसे सकता है. ऐसी स्थिति में सरकार को इस दिशा में सख्त से सख्त कदम उठाना होगा. केवल स्टेशन में ही नहीं बल्कि हर शहर और मोहल्ले में जेनेरिक दवाओ के स्टोर्स खोलने का लाइसेन्स लोगो को देने का प्रयास करना चाहिए. साथ ही साथ पर्याप्त मात्र में इनका प्रचार प्रसार भी करना चाहिए. सिर्फ छोटे शहरों में ही नहीं बल्कि बड़े बड़े शहरों में भी जेनेरिक दवाओ का समर्थन करना चाहिए. हर गली और मोहल्ले में जेनेरिक दवाओ के शिविर लगाने चाहिए और इनके माध्यम से जेनेरिक दवाओ से सम्बंधित भ्रम और मिथक को दूर करने का प्रयास करना चाहिए. लोगो को इन दवाओ का ज्ञान देना बहुत ही आवश्यक है. जेनेरिक दवाओ के आने से एक बात तो साबित होती है कि किसी भी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए महंगी दवाओ पर निर्भर रहने की अब तो बिलकुल भी आवश्यकता नहीं रह गई है क्योंकि जेनेरिक दवाओ के बाज़ार में सस्ते दामो में उपलब्ध होने से बीमारी का इलाज़ आसानी संभव हो गया है. भारत सरकार को भी ये प्रयास करना चाहिए कि आम लोगो को ज्यादा से ज्यादा जेनेरिक दवाओ के बारे में जागरूक करवाया जाये और उन्हें इन दवाओ के इस्तेमाल की सलाह दी जाये लेकिन यह काम सबसे बेहतर तरीके से डॉक्टर्स द्वारा ही संभव है. डॉक्टर्स अपना व्यग्तिगत हित और ज्यादा लाभ के लालच को परे रखते हुए अपने मरीजो को जेनेरिक दवाओ के इस्तेमाल की सलाह दे तभी देश और मरीजो का भला हो सकेगा.