जानिए क्या है अनुच्छेद 371, केंद्र सरकार इसे भी रद्द कर सकती है ?

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जिस तरह से अनुच्छेद 370 ने जम्मू और कश्मीर को विशेष अधिकार दिए थे, जिसे खत्म कर दिया गया ठीक उसी तरह अनुच्छेद 371 भी अन्य राज्यों को कई तरह के विशेष अधिकार देता है।

जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटने के बाद स्थानीय जनता और राजनीतिक दलों के मन में आशंकाएं थीं कि सरकार किसी दिन पूर्वोत्तर के राज्यों को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 371 को भी हटा सकती है। जिसके बाद गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को पूर्वोत्तर के राज्यों को आश्र्वस्त करते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 और 371 के बीच काफी फर्क है साथ ही कहा कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 371 को कभी नहीं टच करेगी।

क्या है अनुच्छेद 371

अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में लागू है, इस अनुच्छेद के पास महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यपाल के कुछ विशेष अधिकार है। महाराष्ट्र के राज्यपाल विदर्भ और मराठावाड़ा में अलग से विकास बोर्ड बना सकते हैं। इसी तरह गुजरात के राज्यपाल भी सौराष्ट्र और कच्छ में अलग विकास बोर्ड बना सकते हैं। टेक्निकल एजुकेशन, वोकेशनल ट्रेनिंग और रोजगार के लिए भी राज्यपाल स्पेशल अरेंजमेंट कर सकते हैं। अनुच्छेद 371 में 371A, 371B, 371C, 371D, 371E, 371F, 371G, 371H, 371I और 371J शामिल हैं।

अनुच्छेद 371 – संविधान का अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र और गुजरात राज्य के लिए है, इसके मुताबिक इन राज्यों के राज्यपाल की यह जिम्मेदारी है कि महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाडा और शेष महाराष्ट्र के लिए गुजरात में सौराष्ट्र और कच्छ के इलाके के लिए अलग विकास बोर्ड बनाए जाएंगे। इन बोर्डों का काम इन इलाकों के विकास के लिए समान राजस्व का वितरण होगा साथ ही राज्य सरकार के अंतर्गत तकनीकी शिक्षा, रोजगारपरक शिक्षा और रोजगार के मौके प्रदान करने की जिम्मेदारी भी इन बोर्ड के ऊपर ही होगी।

अनुच्छेद 371ए- अनुच्छेद 371 ए को संविधान में 13वें संशोधन के बाद 1962 में जोड़ा गया था, ये अनुच्छेद नागालैंड के लिए है। इसके मुताबिक संसद बिना नागालैंड की विधानसभा की मंजूरी के नागा धर्म से जुड़ी हुई सामाजिक परंपराओं, पारंपरिक नियमों, कानूनों, नागा परंपराओं द्वारा किए जाने वाले न्यायों और नागाओं की जमीन के मामलों में कानून नहीं बना सकती है।

यह अनुच्छेद नागाओं और केंद्र सरकार के बीच हुए 16 सूत्री समझौते के बाद अस्तित्व में आया था, इसी अनुच्छेद के तहत नागालैंड के तुएनसांग जिले को भी विशेष दर्जा मिला है। नागालैंड सरकार में तुएनसांग जिले के लिए एक अलग मंत्री भी बनाया जाता है। साथ ही इस जिले के लिए एक 35 सदस्यों वाली स्थानीय काउंसिल बनाई जाती है।

अनुच्छेद 371 बी- अनुच्छेद 371 बी को 1969 में 22वें संशोधन के बाद संविधान में जोड़ा गया था, यह अनुच्छेद असम के लिए है, इसके मुताबिक भारत के राष्ट्रपति राज्य विधानसभा की समितियों के गठन और कार्यों के लिए राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों को शामिल कर सकते हैं।

अनुच्छेद 371 सी- अनुच्छेद 371 सी को 1971 में संविधान के 27वें संशोधन के बाद संविधान में जोड़ा गया था। यह अनुच्छेद मणिपुर के लिए है, इसके मुताबिक भारत के राष्ट्रपति विधानसभा में राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों से निर्वाचित सदस्यों की एक समिति का गठन और कार्य करने की शक्ति प्रदान कर सकते हैं, और इसके काम को सुनिश्चित करने के लिए राज्यपाल को विशेष जिम्मेदारी सौंप सकते हैं। राज्यपाल को इस विषय पर हर साल एक रिपोर्ट राष्ट्रपति के पास भेजनी होती है।

अनुच्छेद 371 डी- इस अनुच्छेद को 32वें संशोधन के बाद 1973 में भारत के संविधान में शामिल किया गया था, पहले ये सिर्फ आंध्र प्रदेश के लिए था। 2014 में आंध्र प्रदेश के दो हिस्से करने के बाद ये अनुच्छेद आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए लागू हुआ। इसके मुताबिक राष्ट्रपति की यह जिम्मेदारी है कि राज्य के अलग-अलग हिस्से के लोगों के लिए पढ़ाई और रोजगार के लिए समान अवसर प्रदान करें, वो राज्य सरकार को सिविल सेवाओं में अलग-अलग काडर में किसी भी वर्ग के पद सृजित कर उन्हें अलग-अलग इलाकों से आने वाले लोगों को मिलना सुनिश्चित करने का आदेश दे सकते हैं साथ ही राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर एक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल बना सकते हैं जो राज्य सिविल सेवाओं में नियुक्ति और पदोन्नति देने का काम करे।

अनुच्छेद 371 ई- 371 ई के तहत केंद्र सरकार संसद में कानून बनाकर आंध्र प्रदेश में एक केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना करेगी, ये अनुच्छेद समय के साथ अप्रसांगिक हो गया है।

अनुच्छेद 371 एफ- अनुच्छेद 371 एफ को संविधान में 36वें संशोधन के बाद 1975 में जोड़ा गया था. ये उस समय भारत में जुड़े एक नए राज्य सिक्किम के लिए विशेष प्रावधान करता है. इसके तहत सिक्किम में विधानसभा की स्थापना, सिक्किम को एक संसदीय क्षेत्र बनाना, सिक्किम विधानसभा के सदस्यों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार आदि शामिल हैं, साथ ही राज्यपाल राज्य के अलग-अलग तबकों से सदस्य विधानसभा के लिए मनोनीत कर सकते हैं। साथ ही राज्यपाल की यह जिम्मेदारी होगी कि वो राज्य में शांति स्थापित रखें, राज्य के अलग-अलग तबकों में समान रूप से सामाजिक और आर्थिक मौके देना सुनिश्चित करें, इसके अलावा भारत के सभी कानून भी सिक्किम में लागू होंगे।

अनुच्छेद 371 जी- 1986 में किए गए संविधान के 53वें संशोधन के बाद मिजोरम के लिए अनुच्छेद 371 जी को जोड़ा गया, इस कानून के मुताबिक भारत की संसद मिजोरम की विधानसभा की मंजूरी के बिना मिजो समुदाय से जुड़े रीति-रिवाजों, उनके प्रशासन और न्याय के तरीकों और जमीन से जुड़े मसलों पर कानून नहीं बना सकेगी, इन सब पर कानून बनाने के लिए राज्य विधानसभा से मंजूरी के बाद संसद कानून बना सकती है।

अनुच्छेद 371 एच- 1986 में 55वें संविधान संशोधन के बाद अरुणाचल प्रदेश के लिए यह अनुच्छेद जोड़ा गया, इस अनुच्छेद के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश के राज्यपाल के पास कानून व्यवस्था से जुड़े मसलों पर मंत्रिमंडल से चर्चा करने के बाद अपने विवेकानुसार फैसले लेने का अधिकार होगा, अगर कानून व्यवस्था के किसी मुद्दे पर राज्यपाल और सरकार में मतभेद होंगे तो राज्यपाल का निर्णय ही मान्य होगा।

अनुच्छेद 371 आई- 371 आई गोवा राज्य के लिए बनाया गया कानून था। गोवा राज्य आकार में बेहद छोटा था इसलिए इस अनुच्छेद के मुताबिक गोवा की विधानसभा को कम से कम 30 सदस्यों की विधानसभा बनाने का नियम बनाया गया, हालांकि ये भी समय के साथ अप्रसांगिक हो गया है।

अनुच्छेद 371 जे- 2012 में संविधान में किए गए 98वें संशोधन के बाद कर्नाटक के लिए यह अनुच्छेद बनाया गया. यह अनुच्छेद 371 से मिलता जुलता नियम है। इसके मुताबिक कर्नाटक में हैदराबाद-कर्नाटक के इलाके के लिए एक अलग विकास बोर्ड बनेगा जो हर साल राज्य विधानसभा को अपनी रिपोर्ट देगा, साथ ही यह विकास बोर्ड इलाके के विकास के लिए मिलने वाले राजस्व का वितरण भी समान तौर पर करेगा, साथ ही इलाके के लोगों के लिए शिक्षा और रोजगार के समान मौके प्रदान करेगा। यह बोर्ड किसी भी नौकरी में इस इलाके के लोगों के लिए एक अनुपात में आरक्षण की मांग भी कर सकता है, हालांकि यह व्यवस्था इस इलाके में पैदा हुए लोगों के लिए ही होगी।

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