इस युग के वो आदर्श पुरुष जिन्हे पूरी दुनिया सम्मान से महामना कहती है भारत के राष्ट्पिता महात्मा गाँधी ने उन्हें भारत निर्माता की संज्ञा दी थी। वो एक ऐसी महान आत्मा थे जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी । वह एक देश भक्त थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए हर संम्भव कोशिश की।
पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। उनके पिता पंडित बैजनाथ और माता मीणा देवी थी। पांच साल की उम्र में उनकी प्रारंभिक शिक्षा महाजनी स्कूल से शुरू हुई । इसके बाद वो धार्मिक विद्यालय चले गए जहा हरादेव जी के मार्ग दर्शन में शिक्षा हुई यही से पंडित मदन मोहन मालवीय के सोच पर हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रभाव पड़ा 1879 में उन्होंने इलाहबाद विश्विद्यालय से मेट्रिक की पढाई पूरी की।
1878 में उन्होंने 16 वर्ष की आयु में कुंदन देवी से विवाह कर लिए थे उनकी पांच पुत्रिया और पांच पुत्र थे।वर्ष 1884 इसबी में वो कलकत्ता चले गए जहा उसने कलकत्ता विश्विद्यालय से बीए की पढाई पूरी की और 40 रुपये मासिक पर इलाहबाद जिले में शिक्षक बन गए।
पंडित मदन मोहन मालवीय ने अपनी सारी ज़िन्दगी इस देश को आजाद करने में लगा दिए वो एक कुशल राजनेता के तौर पर अपने जीवन की शुरुआत की 1886 में दादाभाई नौरोजी की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में भाग लिए और उसने अपने शुरुआती भाषण ने एक गहरी छाप छोड़े जिसे काफी बुद्धिजीबियों ने सराहा इस भाषण का असर महाराजा श्री रामपाल सिंह पर पड़ा और इससे प्रभाबित हो कर वो उन्हें साप्ताहिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान का संपादक बनाने और उसका प्रबंधक बनने की पेशकश किये और ढाई वर्ष तक संपादक रहने के बाद उन्होंने अपनी एल एल बी की पढाई के लिए इलाहबाद चले गए और 1891 में उन्होंने एल एल बी की पढाई पूरी की और इलाहबाद कोर्ट में अपनी न्यायिक प्रैक्टिस शुरू कर दिए
पंडित मदन मोहन मालवीय के महान योगदान
साथ हीं साथ देश की आजादी और इस देश का विकास भी उनके दिलो दिमाग में छाया हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 21 वे अधिवेशन में मदन मोहन मालवीय ने एक हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार सबके सामने रखा और 1915 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय विधेयक पास हो गया और 4 फरबरी 1916 को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना हुयी और पंडित मदन मोहन का वो सपना साकार हो गया उन्होंने शिक्षा और समाज में जन कल्याण के लिए न्यायिक का काम छोड़ दिया लेकिन चोरा चोरी कांड में दोषी बताये गए 177 लोगो को बचाने के लिए न्ययालय में केश लड़ा और 177 में 156 लोगो को कोर्ट ने दोष मुक्त घोषित किया 1920 में जब महात्मा गाँधी ने पुरे देश में असहयोग आंदोलन की शुरुआत किये तो उस आंदोलन में पंडित मदन मोहन मालवीय ने महत्पूर्ण भूमिका निभाई उनके अंदर भड़की क्रांति की ज्वाला ने अंग्रेजो को दाँत खट्टे कर दिए।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष |
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कार्यकाल 1909–10; 1918–19; 1932-1933 |
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जन्म | 25 दिसम्बर 1861 प्रयाग, ब्रिटिश भारत |
मृत्यु | 12 नवम्बर 1946 (आयु: 85वर्ष) बनारस, ब्रिटिश भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
राजनैतिक पार्टी | हिन्दू महासभाभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
विद्या अर्जन | प्रयाग विश्वविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय |
धर्म | हिन्दू |
1931 में इन्होने पहले गोलमेज सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किये और 30 मई 1932 को मदन मोहन मालवीय ने पुरे देश में एक एलान पत्र जारी किया जिसमे भारतीयों से गुजारिश किया की भारतीय खरीदो देसी खरीदो।मदन मोहन मालवीय ने बी एच यु के कुलपति का पद राधाकृष्णनन के लिए छोड़ दिए जो बाद में चल कर भारत के राष्ट्पति बने मालवीय ने भारत सुधारक का इतने काम किया की देश सदा गर्व करेगा।
मदन मोहन मालवीय को महामना की उपाधि किसने दी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी मदनमोहन गाँधी ने महामना की उपाधि दी और मस्ता से महामना बन गए मदनमोहन
जब हिंदुस्तान टाइम अपने बुरे वक़्त में था तब पंडित मदन मोहन मालवीय को संपादक का पद दिया गया और इन्होने हिंदुस्तान टाइम को हिंदी में अनुसरण कर इसकी सफलता को फिर से कायम कर दिए। पंडित मदन मोहन मालवीय गोरक्षा पछ धर थे उन्होंने 1941 में गोरक्षा मंडल की स्थापना किये। जीवन के अंतिम वर्षो में बीमारी के चलते 12 नवम्बर 1946 को उनका निधन हो गया इस तरह एक सच्चे और शिक्षा वादी, देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी का अंत हो गया।
मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न
भारत सरकार ने २४ दिसम्बर २०१४ को उन्हें भारत रत्न से अलंकृत किया।