ये प्रेरक कविताएं राष्ट्र के उज्जवल भविष्य का निर्माण करने वाले शिक्षकों को समर्पित हैं। समस्त शिक्षकगणों के सम्मान में कुछ सुन्दर शिक्षक दिवस पर कविताएँ यहाँ उपलब्ध हैं। छात्र व छात्राएं इन कविताओं को अपने गुरुओं को समर्पित करके उनका आभार व्यक्त करें-
सही क्या है, गलत क्या है, ये सब बताते हैं आप।
झूठ क्या है और सच क्या है, ये सब समझाते है आप।
जब सूझता नहीं कुछ भी राहों को सरल बनाते हैं आप।
जीवन के हर अँधेरे में रौशनी दिखाते हैं आप।
बंद हो जाते हैं जब सारे दरवाजे, नया रास्ता दिखाते हैं आप।
सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं जीवन जीन सिखाते हैं आप !
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गुरू बिन ज्ञान नहीं गुरू बिन ज्ञान नहीं रे।
अंधकार बस तब तक ही है, जब तक है दिनमान नहीं रे।
मिले न गुरु का अगर सहारा, मिटे नहीं मन का अंधियारा।
लक्ष्य नहीं दिखलाई पड़ता, पग आगे रखते मन डरता।
हो पाता है पूरा कोई भी अभियान नहीं रे। गुरु बिन ज्ञान नहीं रे
जब तक रहती गुरु से दूरी, होती मन की प्यास न पूरी।
गुरु बिन जीवन होता ऐसा, जैसे प्राण नहीं, नहीं रे
भटकावों की राहें छोड़ें, गुरु चरणों से मन को जोड़ें
गुरु के निर्देशों को मानें, इनको सच्ची सम्पत्ति जानें।
धन, बल, साधन, बुद्धि, ज्ञान का, कर अभियान नहीं रे, गुरु बिन ज्ञान नहीं रे
गुरु से जब अनुदान मिलेंगे, अति पावन परिणाम मिलेंगे।
टूटेंगे भवबन्धन सारे, खुल जायेंगे, प्रभु के द्वारे
क्या से क्या तुम बन जाओगे, तुम को ध्यान नहीं, नहीं रे।
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सुन्दर सुर सजाने को साज बनाता हूँ, नौसिखिये परिंदों को बाज बनाता हूँ, चुपचाप सुनता हूँ शिकायतें सबकी तब दुनिया बदलने की आवाज बनाता हूँ।
समंदर तो परखता है हौंसले कश्तियों के और मैं डूबती कश्तियों को जहाज बनाता हूँ
बनाए चाहे चांद पे कोई बुर्ज ए खलीफा अरे मैं तो कच्ची ईंटों से ही ताज बनाता हूँ