विश्व के इतिहास और विश्वपटल पर भारत एक महान देश के रूप में आज भी अपनी प्रभुसत्ता को कायम रखे हुए है. भारत देश ने इस विश्व को एक से बढकर एक महान कवि और संत के रत्नों से सुशोभित किया है. इस देश को संतो, योगियों, सिद्धो और ऋषि-मुनियों की धरती कहा जाता है. आज हम आपको ऐसे ही एक अद्भुत संत के बारे में बताने जा रहे है. हम बात कर रहे है हिंदी साहित्य के महान कवि, रामचरितमानस के रचयिता एवं संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी के बारे.
तुलसीदास जी का जन्मकाल
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्मकाल सन १५११-१६२३ इस्वी तक का माना गया है. कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान सोरो शूकरक्षेत्र जोकि वर्तमान में कासगंज (एटा) उत्तरप्रदेश बतलाते है तो वही कुछ उनका जन्मस्थान राजापुर जिला बांदा जोकि वर्तमान में चित्रकूट में स्थित है, मानते है. तुलसीदास जी को आदिकवि और रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है. तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दुबे था एवं उनकी माताजी का नाम हुलसी था.
तुलसीदास जी का बचपन
तुलसीदास जी के बचपन का नाम रामबोला था. ऐसी मान्यता है कि उनके जन्म से ही उनके मुख में १२ दांत थे. इनके गुरूजी का नाम नरहर्यानन्द (नरहरी बाबा) जी था. तुलसीदास नाम नरहरी बाबा के द्वारा ही दिया गया है. इनकी बुद्धि बचपन से ही प्रखर थी. यज्ञोपवित संस्कार के समय बिना सिखाये ही इन्होने गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था. गुरु तुलसीदास जी की एक विशेषता थी कि वो गुरु मुख से जो भी सुन लेते थे वह उन्हें एक बार में ही कंठस्थ हो जाता था.
तुलसीदास जी का विवाह
ज्येष्ठ शुक्ल की त्रयोदशी, गुरुवार, संवत् १५८३ को २९ वर्ष की आयु में राजापुर से थोडी ही दूर यमुना पार स्थित एक गाँव की भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ था. काशी में रहते हुए एक दिन अचानक इन्हें अपनी पत्नी की याद आने लगी और वो अत्यधिक विचलित हो गए और लोक-लाज की परवाह किये बगैर अर्ध रात्री को यमुना नदी पार कर सीधे अपनी पत्नी के शयन-कक्ष में पहुँच गए. उनकी यह हरकत रत्नावली को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी और उन्होंने एक दोहे के माध्यम से उनको फटकार लगाईं-
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
यह दोहा सुनते ही तुलसीदास जी की आँखें खुल गई और उन्हें अपने कृत्य पर शर्मिंदगी हुई. यही से उनके जीवन ने एक नया मोड़ लिया. इसी घटना ने संसार को संत शिरोमणि और एक महान कवि गोस्वामी तुलसीदास दिया.
तुलसीदास जी की रचना
संवत १६३१ को रामनवमी को तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना प्रारंभ किया और दो वर्ष, सात महीने और छब्बीस दिन में इस संसार को यह अद्भुत ग्रन्थ भेंट स्वरुप मिला. इसके अलावा इन्होने निम्नलिखित ग्रंथों की भी रचना की-
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तुलसीदास जी की मृत्यु
संवत १६८० में श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को तुलसीदास जी ने राम-राम कहते हुए इस नश्वर देह का त्याग कर सदा-सदा के लिए इस संसार को अलविदा कह बैकुंठ धाम की यात्रा पर चले गए.