आज का यह लेख स्वच्छ भारत संकल्प पर आधारित है। जिसके जरिए हम आपको बॉयो टॉयलेट के बारे में बताने जा रहें हैं। जैसे कि बायो टॉयलेट किसे कहते हैं?, यह कैसे काम करता है?, आपको वैक्यूम तकनीकी से युक्त बायो टॉयलेट प्रयोग करते समय कौन सी सावधानियां बरतनी है?
इसके अलावा हम आपको बताएंगे कि वैक्यूम तकनीकी से युक्त बायो टॉयलेट से होने वाले लाभ क्या हैं? हम आपको बातएंगे कि ‘स्वच्छ रेल-स्वच्छ भारत’ कार्यक्रम के तहत ट्रेनों में कितने बॉयोटॉयलेट लगा चुकी है? साथ ही आपको बताएंगे कि दुनिया की पहली बायो वैक्यूम टॉयलेट युक्त ट्रेन कौन सी है?
बायो टॉयलेट किसे कहते हैं और कैसे करता है काम?
- बायो टॉयलेट (Bio Toilet), परम्परागत टॉयलेट से अलग एक ऐसा टॉयलेट होता है, जिसमें बैक्टेरिया की मदद से मानव मल को पानी और गैस में बदल दिया जाता है।
- बायो टॉयलेट का अविष्कार रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (DRDO) तथा भारतीय रेलवे द्वारा मिलकर किया गया है।
- बायो टॉयलेट्स में शौचालय के नीचे बायो डाइजेस्टर कंटेनर में एनेरोबिक बैक्टीरिया होते हैं, जो मानव मल को पानी और गैसों में बदल देते हैं।
- इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल मीथेन गैस और पानी ही बचता है।
- जिसके बाद पानी को री-साइकिल करके उसे शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- साथ ही इन गैसों (मीथेन गैस) को वातावरण में छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा जो दूषित जल होता है, उसको क्लोरिनेशन के बाद पटरियों पर छोड़ देते हैं।
स्वच्छ भारत संकल्प की ओर भारतीय रेलवे के बढ़ते कमद
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत सरकार ने 2013 से हाथ से मैला उठाने की प्रथा को प्रतिबंधित कर दिया है। इसी कारण भारतीय रेलवे में भी मल से सम्बंधित सभी काम अब मशीन के द्वारा ही कराये जाने की प्रणाली को शुरू करने के लिए सरकार ने ट्रेन में बायो टॉयलेट्स या जैविक शैचालयों को लगाने के निश्चय किया है।
भारत सरकार पूर्ण स्वच्छता मिशन 2020 को जल्द से जल्द अमल में लाने की कोशिश कर रही है। इस समस्या को देश भर से पूरी तरह मिटाने के लिए सरकार ने अहम कदम उठाएं हैं, जिसके चलते भारतीय रेलवे द्वारा ‘स्वच्छ रेल-स्वच्छ भारत’ कार्यक्रम के अंतर्गत अब तक 2,40,713 बायो टॉयलेट लगाए जा चुके हैं। ऐसा करने से बढ़ती गंदगी को रोकने में काफी हद तक मदद मिली है।
दुनिया की पहली बायो वैक्यूम टॉयलेट युक्त ट्रेन कौन सी है?
डिब्रूगढ़ राजधानी ट्रेन दुनिया की पहली बायो वैक्यूम टॉयलेट युक्त ट्रेन है, जिसे भारतीय रेलवे ने पेश किया था।
आखिर क्या फायदेमंद हैं वैक्यूम तकनीकी से युक्त बायो टॉयलेट?-
- भारत के स्टेशन अब साफ़ सुथरे और बदबू रहित हो जायेंगे। जिससे कई बीमारियों को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी।
- बायो टॉयलेट्स के इस्तेमाल से मानव मल को हाथ से उठाने वाले लोगों को इस गंदे काम से मुक्ति मिल जाएगी।
- 3.वैक्यूम तकनीकी से युक्त बायो टॉयलेट इसलिए भी ज्यादा फायदेमंद हैं, क्योंकि यह पानी की भी बचत करते हैं।
- 4.जहां ट्रेनों में पाया जाने वाला एक सामान्य बायो टॉयलेट एक बार फ्लश करने पर 10-15 लीटर पानी का इस्तेमाल करता है। वहीं दूसरी तरफ यह वैक्यूम आधारित बॉयो टॉयलेट एक फ्लश में करीब आधा लीटर पानी ही इस्तेमाल करते हैं।
वैक्यूम तकनीकी से युक्त बायो टॉयलेट प्रयोग करते समय बरते ये सावधानियां?-
- बायो टॉयलेट के साथ सबसे बड़ी चिंता इनका काफी ज्यादा रखरखाव होता है।
- बायो टॉयलेट सही से काम करें इसके लिए यात्रियों को भी काफी जिम्मेदारी से काम करना होगा।
- उन्हें ध्यान रखना होगा कि वे इन शौचालयों में प्लास्टिक बोतल, चाय का कप, कपड़े, सैनेटरी नैपकिन, नैपी, प्लास्टिक थैलियां, गुटखा पाउच समेत अन्य वस्तुएं न डालें।
मानव मल का खाद के रूप प्रयोग क्यों किया जाता है?
- वैज्ञानिकों के अनुसार एक मनुष्य प्रतिवर्ष औसतन जितने मल-मूत्र का त्याग करता है।
- उससे बनी खाद से लगभग उतनी ही भोजन का निर्माण होता है, जितना कि उसे साल भर जिन्दा रहने के लिये जरूरी होता है।
- आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रासायनिक खाद में भी नाइट्रोजन, फास्फोसरस और पोटेशियम का प्रयोग किया जाता है, जिसका सबसे अच्छे स्रोत मनुष्य के मल एवं मूत्र हैं।
- यही वजह कि मुनष्य के मल को अच्छी और गुणकारी खाद माना जाता है।
उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस पोस्ट के जरिए Bio Toilet से संबंधित जानकारी हासिल करने में काफी मदद मिली होगी। हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं। दोस्तों जितना हो सकें आप अपने आसपास स्वच्छता बनाएं रखें। क्योंकि देश को स्वच्छ बनाने में हमारा बहुत बड़ा योगदान है। हमारी शुरूआत से ही भारत गंदगीमुक्त देश बन पाएगा।