यह लेख है गत दिनों में दुनिया भर में चर्चा का विषय रहने वाले तमिलनाडु के प्रसिद्ध खेल जल्लीकट्टू के बारे में, जिसमें आप जल्लीकट्टू प्रथा की विवादों में रही खबरें एवं अन्य आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकेंगें।
जल्लीकट्टू शब्द को प्राचीन शब्द सल्लिकासु का अपभ्रंश माना जाता है जिसमें सल्लि का शाब्दिक अर्थ सिक्कों की थैली और कासु का अर्थ सींग होता है। इस खेल में बिना लगाम के बैलों के सिर पर सिक्कों की गठरी/थैली बांधकर दौड़ाया जाता है, जिसे लोग रोकने की कोशिश करते है, तथा जो व्यक्ति बैलों पर काबू पा लेता है, वह खेल का विजेता होता है तथा उसे उचित ईनाम देकर पुरस्कृत किया जाता है। राज्य के ग्रामीण हिस्सों में अधिक खेले जाने वाले इस सांस्कृतिक खेल को तमिलनाडु को गौरव और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है।
तमिलनाडु का ये पारम्पिरिक खेल जिसकी वजह से पूरे भारत में आक्रोश की लहर चली, मुख्यतः पौंगल पर्व पर खेला जाता रहा है, जिस पर 2014 में पशुओं की सुरक्षा संस्था PETA की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ‘‘जल्लीकट्टू’’ पर पाबंदी लगाने का निर्णय लिया। हालांकि 2006 में ही फेडरेशन आॅफ इंडिया एनिमल प्रोटेक्शन एजेंसी (FIAPO) एवं पीपल फॉर द एथीकल ट्रीटमेंट ऑफ़ एनिमल्स (PETA) ने मद्रास हाईकोर्ट में इस खेल पर प्रतिबंध लगाने हेतु याचिका दायर की थी। परन्तु लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद मई 2014 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सफलता प्राप्त हुई।
इस खेल पर लगने वाले प्रतिबंध का कारण इस खेल को और रोमांचक बनाने के लिए जानवारों/बैलों को उकसाने पर किये उन पर की जाने वाली क्रूरता को बताया गया है, जिसमें बैलों को शराब पिलाना उनके शरीर पर नुकीले वस्तुएं चुभाना इत्यादि शामिल है। साथ ही इस खेल की वजह से इंसान और जानवरों ना केवल बुरी तरह से घायल हाते है बल्कि जान जाने की संभावना भी रहती है।
सुप्रीम कोर्ट में लगी पाबंदी के बाद वर्ष 2015 में जल्लीकट्टू का आयोजन तो नहीं हुआ परन्तु पूरे देश भर में जगह जगह पर इस खेल के दीवाने लोगों की भावनाऐं बेहद आहत हुई जिससे लोग हिंसा पर उतर आये एवं इसे पुनः बहाल करने की मांग करने लगे। जहां एक ओर जल्लीकट्टू पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगायी वहीं दूसरी तरफ 2000 साल पुराने इस खेल के दीवानों ने इस पर लगे प्रतिबंध के विरोध में हिसंक प्रदर्शन शुरू कर दिया।
तमिलनाडु सरकार ने लोगों का जल्लीकट्टू के प्रति अत्यंत विशेष लगाव, जिद एवं इसे वापिस प्रारम्भ करने की इस भारी आक्रोश एवं हिंसा से बिगडती कानून व्यवस्था को देखते हुए विशेष अध्यादेश जारी किया है जिससे जल्लीकट्टू को जारी रखने की कानूनी मान्यता मिल गयी है परन्तु जब तक यह अध्यादेश संसद में पारित नहीं होगा तब तक यह स्थायी तौर पर लागु नहीं माना जा सकता। स्थायी तौर पर जल्लीकट्टू का पुनः प्रारम्भ करवाने हेतु लोगों में बेहद रोष है एवं इसके लिए निरन्तर प्रयासरत है।
तमिलनाडु विधानसभा द्वारा कानून पारित कर जल्लीकट्टू का अनुमति देने के खिलाफ भी भारतीय पशु कल्याण बोर्ड द्वारा कई याचिकाऐं दायर हुई जिनके विषय में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जवाब मांगा जा चुका है।