Mutual Funds को हिंदी में पारस्परिक निधि भी कहते हैं. लेकिन इसका हिंदी नाम बहुत ही कम लोग जानते है और इसे अंग्रेजी नाम “म्युचुअल फण्ड” से ही ज्यादा लोकप्रियता हासिल है. ये एक प्रकार का सामूहिक निवेश भी होता है. यदि आप शेयर बाज़ार में निवेश नहीं कर पा रहे है और आप शेयर बाज़ार से अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहते है तो Mutual Funds आपके लिए सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है.
म्युचुअल फण्ड नियमित रूप से निवेश करने के सिद्धांत पर कार्य करता है. इसे आप एक प्रकार से आवर्ती जमा भी कह सकते है जिसमे आप हर माह में एक निश्चित रकम डालते रहते है. इसमें आपको एक बार में भारी भरकम निवेश करने की आवश्यकता नहीं है बल्कि इसमें आप अपनी रूचि और सुविधानुसार मासिक, तिमाही या वार्षिक निवेश कर सकते है.
म्युचुअल फंड्स में निवेश करने की सबसे अच्छी बात तो ये है कि इसमें आप अपनी अन्य वित्तीय जिम्मेदारियों को प्रभावित किये बिना भी निवेश कर सकते है. साथ ही साथ इनकी खासियत ये भी है कि इसमें कोई भी निवेश कर सकता है फिर चाहे वो कोई निम्न वर्ग का व्यक्ति हो या फिर मध्यम वर्ग का. जो लोग एक बार में बड़ा निवेश नहीं कर सकते है वे लोग भी इसमें ५००/- या १०००/- से नियमित निवेश कर सकते है.
म्युचुअल फंड्स पूरी तरह से बाज़ार जोखिमों के अधीन होता है इसीलिए इसमें बहुत ही सोच समझ कर निवेश करना चाहिए.
म्युचुअल फण्ड कितने प्रकार के होते है ?
रचना के आधार पर :-
- खुली योजना
- बंद योजना
- डेब्ट, इक्विटी एवं हाइब्रिड फण्ड योजनायें
निवेश के उद्देश्य से :-
- इक्विटी योजनायें – शेयर बाज़ार से जुडी योजनायें.
- डेब्ट योजनायें – ऋण योजनायें.
- हाइब्रिड योजनायें – इक्विटी और डेब्ट दोनों में निवेश करनेवाली योजनायें.
- गोल्ड फंड्स – सोने में निवेश करने वाली योजनायें.
- रियल एस्टेट फंड्स – जमीन-मकान में निवेश करने वाली योजनायें.
- कमोडिटी फंड्स.
- कर बचत योजना.
- इंडेक्स फण्ड.
- क्षेत्रीय योजनायें.
म्युचुअल फंड्स में निवेश के लाभ:-
म्युचुअल फण्ड की किसी भी योजना में निवेश का प्रबंधन करने के लिए एक अनुभवी व्यक्ति की नियुक्ति की जाती है. इसे हम निधि प्रबंधक (fund manager) के नाम से भी जानते है. इस व्यक्ति के अधीन बहुत सारे तकनीकी और मूलभूत विश्लेषक कार्य करते है जो कि बाज़ार का अध्ययन और विश्लेषण करते है और अपनी रिपोर्ट निधि प्रबंधक को सौपतें है और इन्ही लोगो की रिपोर्ट के आधार पर निधि प्रबन्धक निवेश का निर्णय लेता है. इससे निवेश की एक सूचि बन जाती है जिसमे कई प्रकार की प्रतिभूतियों का एक समूह बन जाता है. इसमें कई प्रकार के शेयर्स, बांड्स आदि होते है. इसकी वजह से बाज़ार का जोखिम विभाजित और कम हो जाता है. यदि आप एक निवेशक है और किसी योजना में निवेश करते है तो उस योजना की यूनिट्स या शेयर्स आपको प्राप्त हो जाते है और उस योजना की जितनी भी यूनिट्स आपने खरीदी है उतने अनुपात में आपका उस योजना में स्वामित्व हो जाता है. फिर इस बात से कोई भी फर्क नहीं पड़ता है कि आपने निवेश छोटा किया है या बड़ा. हम और आप जैसे ऐसे कई लोग है जो निवेश के कई साधनों में निवेश करते है और उनकी जमा पूंजी कई प्रकार के शेयर्स में निवेश होती है जिसके लाभ होने पर आपको भी उस लाभ में हिस्सेदार बनाया जाता है. इस प्रकार के निवेश से आपका जोखिम भी कम हो जाता है. अब यदि उनमे से कुछ साधनों की कीमते कम-ज्यादा होती है तो आपको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
म्युचुअल फंड्स में कई प्रकार की योजनायें होती है. इनमे से कुछ में कम जोखिम होता है तो किसी में ज्यादा. किसी में शेयर बाज़ार का उतार-चढ़ाव दिखता है तो किसी शेयर में जोखिम कम होता है या जोखिम होता ही नही है. इसमें आपके पास पूरा अधिकार होता है कि आप जिस तरह का जोखिम उठा सकते है उसी तरह के परियोजना में निवेश कर सकते है.
म्युचुअल फंड्स की सबसे दिलचस्प बात ये होती है कि जिस योजना में जोखिम सबसे ज्यादा होता है उसमे लाभ होने की सम्भावना उतनी ही ज्यादा होती है. इसके विपरीत जिस योजना में जोखिम सबसे कम होता उसमे लाभ की सम्भावना भी कम होती है. मान लीजिये यदि आपने किसी इक्विटी योजना में निवेश किया है चूँकि इस योजना में जोखिम ज्यादा होता है तो लाभ भी उतना ही ज्यादा होता है. यदि आप किसी इक्विटी योजना में निवेश की योजना बना रहे है तो एक बात ध्यान रखें कि आपको निवेश कम से कम १५ से २० साल के लिए करना होगा क्योंकि निवेश की अवधि जितनी ज्यादा होगी लाभ भी उतना ही ज्यादा होगा. कम अवधि के लिए किये गए निवेश में लाभ या हानि कुछ भी हो सकता है.
क्या होती है एन.ए.वी.
इसे हम नेट एसेट वेल्यु भी कहते है. जब आप किसी म्युचुअल फण्ड में निवेश करते है तो जितनी पूंजी आपने उस फण्ड में निवेश की है उसी के अनुसार आपको कुछ यूनिट्स भी मिलते है. जब उस यूनिट की कीमतों में उछाल आता है या कीमतें बढती है तो निवेश का मूल्य भी बढ़ता है और इसके विपरीत यदि कीमतों में गिरावट आती है तो निवेश का मूल्य भी कम हो जाता है. इन यूनिट्स की कीमतों में उतार-चढ़ाव को ही म्युचुअल फंड्स की दुनियां में एन.ए.वी. यानि की नेट एसेट वेल्यु के नाम से जाना जाता है.
नेट एसेट वेल्यु की गणना निम्न सूत्र के आधार पर किया जाता है:-
एन.ए.वी. = योजना में किये गए निवेश का कुल मूल्य – योजना का दाईत्व /बची हुई यूनिट्स की संख्या
लाभांश:-
आप जब भी किसी म्युचुअल फण्ड में निवेश करते है तो उसमे आपको दो विकल्प हमेशा मिलेंगे. पहला ग्रोथ यानी वृद्धि और दूसरा लाभांश यानी डिविडेंड. लाभांश में भी आपको दो तरह के विकल्प मिलेंगे. पहला लाभांश पुनर्निवेश और दूसरा लाभांश भुगतान. ज्यादातर निवेशक लाभांश भुगतान विकल्प का ही चुनाव करते है. इस विकल्प में योजना में जब भी लाभांश की घोषणा होती है तो लाभांश की पूंजी आपके बैंक खाते में आ जाती है. यदि आप नियमित रूप से आय चाहते है तो आपको लाभांश विकल्प को चुनना होगा. म्युचुअल फंड्स की ऐसी कई योजनायें बाज़ार में उपलब्ध है जो अपने निवेशकों को हर साल लाभांश का वितरण करती है. जैसे कि एच.डी.ऍफ़.सी. प्रूडेंट फण्ड एक ऐसी योजना है जो कि सन १९९८ से अब तक नियमित रूप से अपने निवेशकों को हर साल नियमित लाभांश का भुगतान करती चली आ रही है.
इक्विटी फंड्स :-
जिन लोगो ने भी इक्विटी फंड्स में निवेश करने की योजना बना रखी है उन्हें लम्बी अवधि के निवेश पर दुगुना-तिगुना फायदा हो सकता है. इक्विटी फंड्स की परिपक्वता राशी पर जो भी लाभ मिलेगा वो पूरी तरह से कर मुक्त होगा. लेकिन इक्विटी फंड्स जैसी योजनाये पूरी तरह से बाज़ार जोखिमों के अधीन होती है और ये फंड्स शेयर बाज़ार में होने वाले उतार-चढ़ाव से प्रभावित भी होते है जिससे कि आपकी पूंजी भी कम होने की सम्भावना होती है लेकिन इस तरह की संभावनाएं छोटी अवधि के निवेश पर अधिकतर लागू होती है. इसीलिए शेयर बाज़ार के विशेषज्ञ आपको हमेशा लम्बी अवधि के लिए निवेश की सलाह देते है.
यदि आपने लम्बी अवधि के लिए निवेश की योजना बना रहे है और इस लम्बी अवधि में आप अपनी संपत्ति तैयार करना चाहते है तो फिर आपको ग्रोथ यानि कि वृद्धि विकल्प का चुनाव करना होगा. यदि कोई नवयुवक म्युचुअल फंड्स में निवेश करना चाह रहा है तो फिर उसे वृद्धि विकल्प में ही निवेश करना चाहिए.
ग्रोथ फण्ड या वृद्धि विकल्प कई तरह के स्टॉक्स की निवेश सूचि होती है जिसका मुख्य उद्देश्य पूंजी में वृद्धि करना होता है जिसमे आपको छोटा या बड़ा किसी भी तरह का लाभांश नहीं दिया जाता है बल्कि इससे अर्जित लाभांश को पुनः उन कंपनियों में निवेश कर दिया जाता है जिनका मुनाफा दूसरी कंपनियों के मुकाबले बेहतर या बहुत अच्छा होता है. ज्यादातर ग्रोथ फंड्स में पूंजी वृद्धि उच्चतम ही रहती है लेकिन आपतौर पर ये औसत जोखिम से ऊपर ही रहता है.
55 साल के ऊपर के व्यक्ति किस प्रकार निवेश करें ।