भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को अनन्त चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों में रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता है। कहा जाता है कि जब पाण्डव जुएमें अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा अनन्तसूत्रधारण किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रतके प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए।
यह पर्व सिर्फ हिन्दुओं में ही नहीं बल्कि जैन धर्म में भी इसका बहुत महत्व है। अनंत चतुर्दशी या अनंत चौदस जैन धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र तिथि है। यह मुख्य जैन त्यौहार, पर्यूषण पर्व का आख़री दिन होता है।
अनंत चतुर्दशी के पावन पर्व पर सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन पूजा के साथ 14 गांठ वाला अनंत सूत्र बांधते हैं। यह कहा जाता है कि अनंतसूत्र के 14 गांठ 14 लोकों का प्रतीक होती हैं। यह भी मान्यता है कि जो 14 सालों तक लगातार अनंत चतुर्दशी का व्रत रखता है उसे विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। अनन्त सूत्र को पुरुष दाहिने और महिलाएं बाएं हाथ में बांधती हैं।
भगवान विष्णु की महीमा बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि हरि अनंत जेहि कथा अनंता….. यानी भगवान श्री हरि अनंत हैं, उनकी कथा और महिमा भी अनंत है। उन्हीं अनंत भागवान की अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा की जाती है।